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300 साल से भी ज्यादा पुराना है तिरुपति प्रसाद का इतिहास, ये वीडियो आपको बताएगा

https://youtu.be/SOApO4r2A8s?si=Fm2pXIys9FBUsvp_

 

आंध्र प्रदेश के तिरुमाला स्थित तिरुपति मंदिर के ‘प्रसादम’ में कथित तौर पर जानवरों की चर्बी मिलाने का मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. इस मामले में एक वकील ने याचिका दायर कर आरोप लगाया कि मौलिक हिंदू धार्मिक रीति-रिवाजों का उल्लंघन कर अनगिनत श्रद्धालुओं की भावनाओं को गहरी ठेस पहुंचाई गई है जो इस प्रसाद को ‘आशीर्वाद’ मानते हैं. वैसे ये बात तो सत्य है की जितनी आस्था करोड़ों लोगों की तिरुपति बालाजी में है उतना ही महत्त्व पिछले सैंकड़ों सालों से मंदिर में मिलने वाले प्रसाद का भी है. आइए आज आपको इस वीडियो के जरिए बताते हैं तिरुपति प्रसादम से जुड़ी सभी चीजें। तो सबसे पहले ये जानते हैं की दरअसल ये विवाद शुरू कहां से हुआ. तो, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने 18 सितंबर को पिछली YSRCP सरकार पर एक आरोप लगाया की उनके शासन के दौरान तिरुपति लड्डू प्रसादम बनाने में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता था. नायडू ने अमरावती में NDA विधायक दल की बैठक में कहा की “ तिरुपति के लड्डू भी घटिया सामग्री से बनाए जाते थे… उन्होंने घी की जगह जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया था.” नायडू के इस बयान के बाद YSRCP ने आरोप को “दुर्भावनापूर्ण” बताते हुए खारिज कर दिया और नायडू को सबूत पेश करने की चुनौती दी. पार्टी के वरिष्ठ नेता और श्री वेंकटेश्वर मंदिर का संचालन करने वाले तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) के पूर्व चेयरमैन वाई वी सुब्बा रेड्डी ने कहा की “नायडू राजनीतिक लाभ के लिए किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं. लड्डू के लिए इस्तेमाल किया गया घी राजस्थान और गुजरात की देशी गायों के दूध से बना उच्च गुणवत्ता वाला था. उनकी टिप्पणी दुर्भावनापूर्ण है.” लेकिन इसके बाद, 19 सितंबर को सामने आती है उस लैब की रिपोर्ट जिसने तिरुपति लड्डू में इस्तेमाल होने वाले घी की जांच की थी. गुजरात के राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के पशुधन और खाद्य विश्लेषण और अध्ययन केंद्र (CALF) प्रयोगशाला की रिपोर्ट में कहा गया है, तिरुपति लड्डू बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए घी में एनिमल फैट मौजूद था और मछली के तेल के अंश थे. इसके साथ ही एक सेमीसॉलिड सफेद फैट मिला है जो सूअर की चर्बी को पिघलाकर मिलता है. रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई में लैब टेस्ट में AR डेयरी फूड्स के घी में फॉरेन फैट की मौजूदगी का पता चला. यानी दूध में मौजूद फैट के अलावा भी फैट पाया गया. जिसके कारण TTD ने ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट कर दिया. और कर्नाटक मिल्क फेडरेशन को कॉन्ट्रैक्ट दे दिया. पहले ब्लैकलिस्ट किए गए ठेकेदार से 320 रुपये प्रति किलो में घी खरीदा जाता था. लेकिन अब कर्नाटक से 475 रुपये प्रति किलोग्राम के रेट से घी खरीदा जा रहा है.
यहां ये जानना जरूरी है कि पिछले साल कर्नाटक के नंदिनी घी ब्रांड का कॉन्ट्रैक्ट खत्म किया था, जिस पर राजनीतिक विवाद भी हुआ था. ये घी कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (KMF) बेचता था. तब TTD अधिकारियों ने आश्वासन दिया था कि प्रसादम के स्वाद पर कोई असर नहीं पड़ेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. तिरुपति लड्डू का पूरा विवाद ही घी से जुड़ा है. आइए अब जानते हैं तिरुपति लड्डू प्रसादम का पूरा इतिहास
तो, तिरुपति के इन प्रसिद्ध लड्डुओं को श्रीवारी लड्डू भी कहा जाता है. माना जाता है कि इनका इतिहास 300 साल पुराना है. तिरुपति के मंदिर में भगवान को लड्डू चढ़ाने और भक्तों को प्रसाद के रूप में देने की शुरुआत 1715 में हुई थी. 2014 में रजिस्ट्रार ऑफ पेटेंट्स, ट्रेडमार्क्स एंड जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स ने तिरुपति लड्डू को जीआई टैग दिया जिसका मतलब यह है कि मंदिर के अलावा कोई भी लड्डू को “तिरुपति लड्डू” नाम देकर नहीं बेच सकता.
प्रसादम को पोटू नाम की एक विशेष रसोई में बनाया जाता है. सभी रसोइए वैष्णव ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. सदियों से इनके परिवार यही काम करते आ रहे हैं. आपको बता दें की लड्डू बनाने वालों को अपना सिर मुंडवाना पड़ता है और रसोई में काम करते समय उन्हें एक ही कपड़ा पहनना होता है जो कि बिल्कुल साफ-सुधरा होना चाहिए.
औसतन रोजाना 3.5 लाख लड्डू तैयार करने वाले रसोइए खास मौकों या त्योहारों पर 4 लाख तक लड्डू बनाते हैं. इन्हें निर्मित करने के लिए 600 विशेष रसोइये हैं जो लड्डू बनाने में माहिर हैं और दो शिफ्टों में लड्डू तैयार करते हैं. रसोइयों का कड़ा हेल्थ चेकअप किया जाता है. करीब दो शताब्दियों तक रसोई में लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन पिछले कुछ दशकों में LPG का इस्तेमाल करना शुरू किया है यानि अब यह पूरी तरह से आधुनिक रसोई बन गई है. रसोई का एक-एक इंच CCTV कैमरों से लैस हैं. तीन कन्वेयर बेल्ट के जरिए लड्डुओं को रसोई से निकालकर बांटने के लिए ले जाया जाता है.”

आइए अब जानते हैं की आखिर लड्डू बनता कैसे है ?
तो, लड्डू के निर्मित होने में उच्च गुणवत्ता वाला घी उन 10 सामग्रियों में से एक है, जिनका इस्तेमाल लड्डू बनाने में किया जाता है. घी के अलावा इसमें बेसन, चीनी, चीनी का बूरा, काजू, इलायची, कपूर और किशमिश का इस्तेमाल किया जाता है. भगवान को चढ़ाए जाने वाले लड्डू और अन्य प्रसाद तैयार करने के लिए हर दिन कम से कम 400 से 500 किलो घी, 750 किलो काजू, 500 किलो किशमिश और 200 किलो इलायची का इस्तेमाल किया जाता है. तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम यानि TTD हर छह महीने में ढाई लाख किलो घी यानि हर साल करीब 5 लाख किलो घी खरीदता है.
मंदिर में ये लड्डू तीन साइज़ में बनते हैं – छोटे, मध्यम और बड़े. सबसे छोटा लड्डू 40 ग्राम का होता है. यह लड्डू मंदिर में आने वाले हर श्रद्धालु को प्रसाद के रूप में दिया जाता है जिसके लिए कोई पैसा नहीं देना होता. मध्यम आकार वाला लड्डू 175 ग्राम का होता है, जिसकी कीमत 50 रुपये प्रति लड्डू है और सबसे बड़े लड्डू की बात करें तो इस एक लड्डू का वजन होता है 750 ग्राम। जिसकी कीमत होती है 200 रुपये.
ये लड्डू मंदिर परिसर के साथ-साथ बाहर भी विशेष काउंटर्स पर उपलब्ध हैं. कहा जाता है कि ये लड्डू 15 दिन तक खराब नहीं होते.

लड्डू और इससे जुड़े विवाद के सन्दर्भ में तो आपने जान लिया लेकिन अब इस पर हो रही सियासत और ताजा अपडेट क्या है
तो आपको बता दें की लड्डू पर हुए भारी बवाल के बाद YSRCP प्रमुख और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने भी चुप्पी तोड़ते हुए कहा की वो खुद प्रधानमंत्री को एक पत्र लिख चुके हैं तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी पत्र लिखकर समझाने की कोशिश करेंगे कि कैसे चंद्रबाबू नायडू ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है और ऐसा करने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए.” इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस पूरे विवाद पर रिपोर्ट मांगी है. स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि उन्हें इस मामले की जानकारी सोशल मीडिया के जरिए मिली है. नड्डा ने कहा कि उन्होंने चंद्रबाबू नायडू से बात की है और इस मसले पर रिपोर्ट मांगी है.

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